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Tuesday, 13th May 2025

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Thought for the day

What our DharmA requires is “Acharan” which is practice and not “PrachAr” which is preaching.
Sri Swami Samarth Akkalkot Maharaj

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Nitya KarmAs

1. abhivAdanam
2. आचमनम
3. प्राणायामम
4. सन्ध्यावन्दनम
5. समिदाधानम
6. ब्रह्म यज्ञम
7. pitru tarpanam
8. उपाकर्मा
9. परिषॆचनम
10. गायत्री जपम
11. sankalpam

pitru tarpanam

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मृतक माता – पिता और पूर्वजों को पितर कहलाते हैं|

तिल और पानी की जलांजली के माध्यम से पित्रों को हम संतुष्ट कर सकते हैं और उनको ऊंचे स्तर पर पहुंचा सकते हैं। इस कर्मा को “पितृ तर्पण” कहते हैं।

यह पितृ तर्पण कर्मा मनुष्य का पञ्चमहायज्ञ कर्मा मे एक है। (संस्कार अंक 23)

मनुस्मृति 3.68 की अनुसार:

पञ्च सूना ग्रुहस्तस्य चुल्ली पॆषण्युपस्कर: |

कण्डनी च उदकुम्भश् च बध्यतॆ यास् तु वाहयन् ||

एक गृहस्थ के घर में 5 हत्या स्थान हैं. वे है चूल्हा, चक्की, झाड़ू, मूसल और मोर्टार, पानी के बर्तन. वह  दैनिक छोटे और अदृश्य लाखों प्राणियों को मारता है, अपरिहार्य उसे पाप पहुँच जाता है।. इन सभी पांच पापों को निवृत्त करने के लिए यह ” पंचमहायज्ञ”गृहस्वामियों के लिए दैनिक निर्धारित किया गया है |

मनुजी आगे 3.70 में कहते हैं ,  “ पितृ यज्ञस्तु तर्पणं ” ऊपर कहे हुये 5 यज्ञों में से पितृ तर्पण एक है |

3 पीढ़ियों के पैतृक और मातृक वर्गों के पित्रों (पिता,दादा,परदादा सपतनियाँ/नाना,परनाना,उनके पिता सपत्नियाँ) को हम तिल और जल का पेशकश करते हैं।  हम 3 पीढ़ियों के पित्रों को वसु, रुद्र और आदित्य पितृ देवता के रूप में आसन देके आवाहन करते हैं।  (वसु रुद्र आदित्य स्वरूपानाम)

फिर हम उन्हें मंत्रों के साथ पानी और तिल की पेशकश करते हैं (तर्पण) जो उन्हें बहुत पसंद है।

फिर हम कहते हैं यजुर्वेद संहिता से एक मंत्र- “ऊर्झम् वहन्तीरम्रुतम् घ्रुतम् पय: कीलालम् परिश्रुतम् स्वधास्थ तर्पयत मॆ पित्रून्.”

मतलब यह तिल और जल मेरे पित्रों को अमृत,पानी, दूध, घास, रक्त या किसी भी अन्य आवश्यक खाद्य/भोजन की रूप मे पहुँच जायें |

(वे स्वर्ग में हो सकते हैं, पुरुष या पेड़ के रूप में या किसी अन्य रूप मे पुनर्जन्म लिए होंगे)। पितृ तर्पण के माध्यम दिये गए तर्पण को स्वधा कहते हैं।

विष्णु पुराण,2 अंश 3,अध्याय 14,श्लोक 1 &2 मे और्व ऋषि कहते हैं :

ब्रह्मॆन्द्ररुद्रनासत्यसूर्याग्निवसुमारुतान् विश्वॆदॆवान् पितृगणान्वयाम्सि मनुजान्पशून् ।

सरीसृपान् ऋषिगणान्यच्चान्यद्भूत सज्ञितम् श्राद्धम् श्रद्धान्वित: कुर्वन् प्रीणयत्यखिलम् जगत् |

निष्ठा के साथ श्राद्ध करने वाला भगवान ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमारों ,सूर्य, विश्वेदेव,पितृगण,पुरुषों, वसु गण,मारुत गणों,पशुओं, गायों, ऋषिगणों और अन्य सभी छोटे दृश्य और अदृश्य जीवों और इस तरह, पूरे ब्रह्मांड को संतुष्ट कर देता है

आज कल बार बार श्राद्ध करना मुश्किल हो गया है, इस लिए तर्पण के रूप में कम से कम इसे निष्पादित कर सकते हैं।

पितृ तर्पण निम्नलिखित 5 श्रेणियों मे शामिल हैं |

1. ब्रह्म यज्ञ (संस्कार- 21) सांध्यवंदन के बाद किया जाना चाहिए |

2. षण्णवती तर्पण (वर्ष के 96 दिनों पर किया जाना चाहिये) |

3. ग्रहण तर्पण (सूर्य और चंद्र ग्रहण पर किया जाना चाहिए) |

4. परेहणी तर्पण (माता – पिता की वार्षिक श्राद्ध के अगले दिन किया जाता है) .

5. अन्त्येष्टि तर्पण (माता – पिता की मृत्यु के समय किया जाना चाहिए)

6. काम्य तर्पण (जो विशेष लाभ के लिए किया जाता है)

 

 

मृतक पिता के बेटे अपने पिता की मौत के एक साल बाद “पितृ तर्पण”शुरू कर देना चाहिए.

महाभारत,आदि पर्व, 74.39 मे दिया है :

पुन्नाम्नॊ नरकादयस्मात्पितरम् त्रायते सुत:.

तस्मात्पुत्र इति प्रॊक्त: स्वयमॆव स्वयम्भुवा.

बेटा पिता को “पुत” नाम का नरक से बचाता है,इसलिए उसे स्वयंभु भगवान ने “पुत्र” नाम रखा था |

 

1। महाभारत,अनुशासन पर्व , अनुभाग 145 मे दिया है :

धन्यम् यशस्यम् आयुश्यम् स्वर्गम् शत्रुविनाशनम् |

सन्तारकम् चेति श्राद्धमाहूर् मनीक्षिण: | |

पित्रों का श्राद्ध करने से धन, यश, दीर्घायु, स्वर्ग, संतान और दुश्मन के विनाश प्राप्त होता है।

2। विष्णु पुराण, अंश 3, अध्याय 14, श्लोक 12 से 14 का कहना है:

एता युगाद्या: कथिता: पुराणॆष्वनन्तपुण्यास्तिथश्चस्त्र:

उपप्लवे चन्द्रमसो रवॆश्च त्रिष्वष्टकास्वप्ययनद्वयॆ च.

पानीयमप्यत्र तिलैर्विमिश्रं दद्यात्पितृभ्य प्रयतॊ मनुष्य:.

श्राद्धं क्रुतम् तॆन समासहस्रं रहस्यमॆतत्पितरॊ वदन्ति.

उगादि दिनों (4 युगों जब शुरू हुआ) पर किया हुआ श्राद्ध अंतहीन “पुण्य” देता है।

चंद्र ग्रहण या सूर्या ग्रहण (ग्रहणों) दिन, या 3अष्टकाओं, उत्तरायण या दक्षिणायन की शुरुआत पर भक्ति के साथ जो पानी और तिल का तर्पण करता है वो 1000 वर्ष के लिए श्राद्ध कर देता है। यह पित्रों चुपके से रहस्य बात करते हैं.

# पितृ तर्पण क्यों करना चाहिए, यह समझने के लिए उनके बारे मे और कुछ विषय समझना महत्वपूर्ण है|

1 पितर कौन हैं?

मनुस्मृति 3.192 कहती हैं:

अक्रॊधना: शौच – परा: सततम् ब्रह्मचारिणि: |

न्यस्त – शस्त्रा महा भागा पितर: पूर्वदॆवता: | |

पितरों आदिम देवता हैं, जो पवित्र, क्रोदितहीन, ब्रहमचरिण  और शुद्ध हैं

और 3.194 में कहते हैं की

मनॊर् हैरण्यगर्भस्य यॆ मरीचि – अदय: सुता: |

तॆशाम् ऋषीणाम् सर्वॆशाम् पुत्रा: पितृगणा: स्मृता: | |

भगवान हिरण्य गर्भ ((सोने का अंडा) मे ब्रहमा के रूप मे जनम हुये,उसके बाद स्वयंभुवा मनु का अवतार हुआ,और उनसे पैदा हुये १० ऋषि।

वे थे मरिचि, अत्रि, भृगु,पुलस्त्य,आदि। उन सबके संतानों को पितर कहलाते हैं।

ये पितरों अत्यधिक स्तर और आध्यात्मिक स्वभाव से स्वर्गीय आनंद से भरे हैं।

उनका काम है उनके वंश में सभी आत्माओं को उत्थान करना| ऐसे ही दुनिया की रचना, जीविका और विनाश की कार्य मे भगवान को मदद करते हैं।

१। ये पितृ देवता कई वर्ग के हैं और बहुत सारे हैं ||

सोम, यम और काव्य सबसे बेहतर पितृ गण हैं.

सोम (चंद्रमा) सभी पित्रों को धारण करते हैं। यम आत्मों को पुण्य/पाप की योग्यता के अनुसार फल देते हैं।

काव्य पितरों हमारे तर्पण की अंजली को पित्रों के पास लेके जाते हैं।

उनमें से ७ सबसे लोकप्रिय हैं – मनुस्मृति 3.195 – 3.200

1. अमूर्त्य _ निराकार पितर, वे हैं (१) वैराज (२) अग्निश्वात्त (३) बरहिशद

(क) वैराज पितृ गण प्रजापति वैराज के बेटे हैं |उनको सोमसद कहलाते हैं। ये “साध्य” नाम के उपदेवताओं के पितर हैं। साध्यों वैराजों की यज्ञ करते हैं॰

(ख) अग्निष्वात्त पितृ गण ऋषि “मारीचि” के बेटे हैं। ये सोमपात लोक मे रहते हैं । ये देवताओं के पितर हैं|ये आध्यात्मिक हैं और संतुष्ट रहते हैं।

(ग) बरिहिषद पितृ गण ऋषि “अत्रि” के बेटे हैं |ये दैत्य,दानव,क्ष, गन्धर्व, नाग, राक्षस,सुपर्ण और किन्नर वर्ग के पितर हैं|ये विभ्राज लोक मे रहते हैं |

२। मूर्तिरहित – शरीर सहित पितु गण –  वे हैं

१। सोमप २। हविष्मत/ सुस्वधा ३। आजयपा ४। सुकालिन

(क) सोमपा पितृ गण ऋषि “भृगु” के बेटे हैं।  ब्राह्मणों के पितर हैं. |वे  “सौमनस लोक” में रहते हैं. वे निरंतर हैं और दुनिया के निर्माण में हिस्सा लेते है।

(ख) “हविष्मत” ऋषि “आंगिरस” के बेटे हैं और  क्षत्रियों के पितर हैं. “हावीष्मान लोक” मे रहते हैं.

(ग) “आजयप” ऋषि “पुलस्त्य” के बेटे हैं और वैश्य के पितर हैं.

(घ) “सुकालिन” ऋषि “वशिष्ठ” के बेटे हैं और बाकी वर्गो के पितर हैं.

  (मत्स्य पुराण और वराह पुराण से निकाल हुआ है)

२।  वे कहाँ रहते हैं?

पितर के कई अन्य वर्गों के साथ साथ हमारे पित्रोंचाँद की अनदेखी पक्ष में रहते है जिसे पितृ लोक कहलाते हैं। यह चांद के पास है इस लिए इसे कभी कभी सोम लोक भी कहा जाता है |इस लोक मे विभिन्न स्तर के पितृ गण भिन्न ज्ञान, अध्यात्म और संतोष के मात्र मे रहते हैं।

पित्रों के एक दिन ३० मानव दिनों के समान होते हैं. एक महीने में एक बार अमावास्य पर पितृ तर्पण करने से, जो उनके लिए दोपहर का खाने का समय है, हम उन्हें तिल पानी की पेशकश देते रहे हैं.

हमारे पूर्वजों की मौत के बाद उनकी यात्रा के बारे में थोड़ी सी भी सुराग नहीं है की वे कहाँ गए,,किधर जन्म लिए,आदि।  लेकिन यह हमारा कर्तव्य है की हम उन्हें जीवित भी खुश रखें और मृत्यु के बाद भी। पितृ तर्पण  एक अद्भुत मौका है जहां देवताओं, वसु, रुद्र और आदित्य,चाहे वे किधर भी हो, उनको सूक्ष्म माध्यम से हमारे जल और तिल को पित्रों के पास उत्तम रूप मे पहुंचा देते हैं और वे आध्यात्मिक ऊंचाई पाते हैं।

३। वे क्या करते हैं? कितनी देर तक वे पितृ लोक मे रहेंगे?

हमारे पित्रों इस पितृ लोक में उनसे बेहतर पितृ गण के पूजा करते रहते हैं। |वे उच्च आध्यात्मिक स्तर पाने के लिए इंतजार करते हैं। तब तक उनको पोषण की जरूरत है |जब हम उनको तर्पण देते हैं,वे संतुष्ट हो जाते हैं और हमें सुख,दौलत और सत संतति की आशीर्वाद देते हैं। |और जब वे अच्छाई करते हैं,तब उसके हिसाब से उनको भी ऊंचाई मिल जाती है।

४।  क्या हमारे जलांजलि सच में उन तक पहुंच जाएगा ?

कृपया तर्पण मंत्र का संदर्भ लें:

“ऊर्झम् वहन्तीरम्रुतम् घ्रुतम् पय: कीलालम् परिश्रुतम् स्वधास्थ तर्पयत मॆ पित्रून्”

हम वसु, रुद्र और आदित्य ,जो पितृ देवता हैं ,उनको आसन और आह्वान करके उनसे अनुरोध करते हैं की यह जो जल और तिल है, इसको हमारे पित्रों तक,कोई भी उत्तम रूप मे पहुंचाए,जो उनके खाने लायक पदार्थ हो। पितृ देवतायेँ ही इसे संभव कर सकते हैं।

 

#किन दिनों मे तर्पण करना चाहिए ?

1. ब्रह्मयज्ञ (संस्कार न। 21) रोज,संध्यावंदन के बाद,“देवऋषीपितृ तर्पण भाग मे”

2. 96 दिनों में स्नानम, सांध्यवंदना, ब्रह्मयज्ञ,माध्याहनिका संध्या,और भगवत आराधना के बाद |(नीचे देखें).

3. सूर्य और चंद्र ग्रहणों में: सूर्यग्रहण की शुरुआत में स्नान लेने के बाद तर्पणकरना चाहिए. लेकिन चंद्रग्रहण की शुरुआत में, एक बार तुरंत नहाना चाहिए, लेकिन ग्रहण के पिछले भाग में तर्पण शुरू करके ग्रहण के साथ इसे अंत करें|.

4. परेहनि तर्पण :माता – पिता की वार्षिक श्राद्ध के अगले दिन,सुबह सांध्यवंदन के बाद करना चाहिए |

# तर्पण दिन का किस समयमे करना चाहिए ?

अह्णॊ मुहूर्ता विख्याता: दश पञ्च च सर्वदा.

तत्र अष्टमॊ मुहूर्तॊ यह स काल: कुतप: स्मृता:.

उपरोक्त श्लोक के अनुसार, एक दिन 15 मुहूर्त से विभाजित है और दिन के आठवें मुहूर्त को “कुतप काल” कहते हैं। यह करीब दोपहर ११ बजे से १२ बजे तक है|इस काल मे तर्पण/श्राद्ध शुरू करना चाहिए ।

# षण्णवती तर्पण

धर्म सिंधु, (मूलमात्र:) मे श्री वासुदेव शर्मा का कहना है:

षण्णवति श्राद्धान्यपिनित्यानि तानिच –

अमा युग मनुक्रान्ति धृति पात महाळया: |

अष्टका अन्वष्टका पूर्वेद्यु: श्राद्धैर्नवतिश्चषट् | |

एक साल में एक व्यक्ति को करना होगा 96 तर्पण|

यह हर साल सभी 96 करने के लिए आज काफी ब्रहमप्रयत्न कार्य है |

लेकिन इसको एक व्याज रकके सारे अनुष्ठानों को नहीं छोड़ना चाहिए |

हमारे संतों ने हमें इसे जीवन के समय कम से कम एक बार तो अनुषटान करने की सलाह दी है।

इन सभी ९६ श्रद्ध मे अनिवार्य है अमावस्या, मास संक्रमण, अष्टका, अन्वष्टका, महालय तर्पण। ग्रहण तर्पण भी  अनिवार्य है अगर आपकी जगह मे दृश्य दिखाई दे रही है तो । नीचे षण्णवति तर्पण का सूचीबद किया है।

1. अमावस्य के दिन, एक साल में -१२

2. संक्रमण  (महीने का शुरुआत) एक वर्ष में – १२

3. महालय पितृ पक्ष (भाद्रपाद /पुरट्टासि का कृष्ण पक्ष) में १६ दिन:

4. मनवादी – मानवनतरों का शुरुआत – १४

 1. चैत्र शुक्ल तृतीय

 2. चैत्र पूर्णिमा

 3. ज्येष्ठा पूर्णिमा

 4. आषाढ़ शुक्ल दशमी

 5. आषाढ़ पूर्णिमा

 6. श्रावण कृष्णा अष्टमी

 7. भाद्रपद शुक्ल तृतीय

 8. आश्वयुजा/अश्विन शुक्ल नवमी

 9. कार्तिक /शुक्ल द्वादशी

10. कार्तिक / पूर्णिमा

11. पौष शुक्ल एकादशी

12. माघ शुक्ल सप्तमी

13. फाल्गुन पूर्णिमा

14. फाल्गुन अमावस्या

5. तिस्रोष्टका – नीचे दिये गए ४ महीने की पूर्वेद्यु (कृष्ण सप्तमी), अष्टका (कृष्ण अष्टमी) और अन्वष्टका (कृष्ण नवमी)  तिथि पर

  मार्गशीर्ष- 3

  पुष्य/पौष  – 3

  माघ – 3

  फाल्गुन – 3

6. उगादि – कृत, त्रेता, द्वापर और कलियुग के आरंब  – ४ दिन

 1. वैशाख शुक्ल तृतीय

 2. कार्तिक शुक्ल नवमी

 3. भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी

 4. माघ पूर्णिमा

7. व्यतीपात – व्यतीपात योग मौजूद होने के समय एक वर्ष में १३ दिन.

  (ज्यादातर वे एक महीनेमे एक बार आते हैं और अतिरिक्त एक होती है)

8. वैधृति  – वैधृति योग मौजूद होने के समय –  एक वर्ष में 13 दिन.

“षण्णवती तर्पण के तिथियों को देखने के लिए “मेरा कैलेंडर” पर क्लिक करें.

तर्पण प्रक्रिया “मेरा पितृ तर्पण ” अनुभाग में उपलब्ध है.

 

तर्पण प्रक्रिया 2 भागों मे शामिल हैं.

1. संकल्प( कर्म करने के लिए उपक्रम)

2. तर्पण प्रक्रिया.

“मेरा संस्कार” खंड में “मेरा पितृ तर्पण” पर क्लिक करें.

1. आप “मेरे पितृ तर्पण ” पृष्ठ के ऊपरी दाएँ हाथ के कोने पर “संपादित संकल्प” चाहत विकल्पों का चयन करें.

2. आप भी अपने आदर्श और व्यक्तिगत प्रक्रिया पाने के लिए अपने सभी पैतृक और मातृक पूर्वजों के नाम भरना होगा.

3. फिर आपके PDFs उत्पन्न होने के लिए तैयार हैं.

#आवश्यक चीजों की सूची

१। दर्भ /कुश घास (अपने पंडित से प्राप्त किया जा सकता है)

२। कूर्च/भूग्न के 4 सेट,

३। पवित्र (3दर्भों से बने )

४। तिल के बीज

५। पानी

६। एक तांबे / चांदी / पीतल / की थाली.

७। ३  पीढ़ियों के लिए पैतृक और मातृक पक्ष दोनों के मूल नाम (उनके नामकरण नाम )

# तर्पण के नियम :

#  करने से पहले कुछ भी नहीं खाना चाहिए. उस दिन के रात में, किसी भी उपवास खाना खाना चाहिए|वैसे ही तिथि के पहले दिन की रात मे भी उपवास का खाना लेना है।

#  तर्पण के दिन की सुबह में गीले किए हुये और सूखे धोती पहनना चाहिए. (संभव नहीं तो पिछली रात मे धोती को धो के एक स्थान पर लटकाए जिधर कोई नहीं चुएंगे )

#पेशकश के लिए तिल की संख्या

विष्णु पुराण 3.14.27

तिलैस्सप्ता अष्टभिर्वापि समवॆतम् जलाञ्जलिम्.

भक्तिनम्र: स्समुद्दिष्य भुव्यस्माकम् प्रदास्यति.

पूर्वजों अपने बेटों के हाथ से सात या आठ तिल के बीज का तर्पण के लिए इंतज़ार करते हैं। यह उनके पितृगान से मालूम पड़ता है।

 

एक नदी पक्ष पर तर्पण प्रदर्शन करना उचित है. ग्रहण काल मे गंगा की तरह एक पवित्र नदी सबसे विशेष है। अन्यथा हमे अपने घर या आंगन में ही करना चाहिए.

 

१। आम तौर पर दोपहर 11:30 के आसपास तर्पण शुरू करना चाहिए,अगर संभव नहीं है तो हमारे संत 8:45 के बाद करने की अनुमति दी हैं |लेकी यह जल्दी सुबह सुबह कभी नहीं किया जाना चाहिए.

२। अगर तर्पण करना भूल गए तो इसकेलिए कुछ प्रायश्चित नहीं हैं |उपवास से मन शांत हो सकता है|

३। अगर तर्पण के दिन (शुक्रवार), (रविवार) या (मंगलवार) मे हो या अपने जन्म नक्षत्र पर गिर जाता है, तो आप तिल के सात थोड़ा चावल मिलाके तर्पण दे सकते हैं॰

भृगुवादित्यार वारॆषु पित्रु तृप्त्यै जलान्जलीन्.

स अक्षतान् सन्दिशॆत् धीमान् तत्तत् दर्शादिकॆ दिनॆ.

४। विवाहॆ चॊपनयनॆ चौळॆ सति यथाक्रमम्.

     वर्षमर्धम् तदर्धम् च नैत्यकॆ तिल तर्पणम्.

अगर शुभ कार्य के बाद,जैसे शादी,उपनयन,आदि तुरंत अगले दिन तर्पणका दिन हो तो कच्चा चावल के साथ तिल को मिलके जलांजलि दे सकते हैं।

१। उपनयन के मामले में छह महीने तक

२। चौल संस्कार के मामले मे तीन महीने तक

३। शादी के मामले मे एक साल तक

 

१। आम तौर पर दोपहर 11:30 के आसपास तर्पण शुरू करना चाहिए,अगर संभव नहीं है तो हमारे संत 8:45 के बाद करने की अनुमति दी हैं |लेकी यह जल्दी सुबह सुबह कभी नहीं किया जाना चाहिए.

२। अगर तर्पण करना भूल गए तो इसकेलिए कुछ प्रायश्चित नहीं हैं |उपवास से मन शांत हो सकता है|

३। अगर तर्पण के दिन (शुक्रवार), (रविवार) या (मंगलवार) मे हो या अपने जन्म नक्षत्र पर गिर जाता है, तो आप तिल के सात थोड़ा चावल मिलाके तर्पण दे सकते हैं॰

भृगुवादित्यार वारॆषु पित्रु तृप्त्यै जलान्जलीन्.

स अक्षतान् सन्दिशॆत् धीमान् तत्तत् दर्शादिकॆ दिनॆ.

४। विवाहॆ चॊपनयनॆ चौळॆ सति यथाक्रमम्.

     वर्षमर्धम् तदर्धम् च नैत्यकॆ तिल तर्पणम्.

अगर शुभ कार्य के बाद,जैसे शादी,उपनयन,आदि तुरंत अगले दिन तर्पणका दिन हो तो कच्चा चावल के साथ तिल को मिलके जलांजलि दे सकते हैं।

१। उपनयन के मामले में छह महीने तक

२। चौल संस्कार के मामले मे तीन महीने तक

३। शादी के मामले मे एक साल तक

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a aa,A i ee,I  
अ आ इ ई  
u U,oo E ai  
उ ऊ ए ऐ  
O ou,ow,au Ru aha  
ओ औ ऋ :  
k kha g gha nga
क ख ग घ ङ
ch Ch ja jha ngya
च छ ज झ ञ
T Th D DH N
ट ठ ड ढ ण
t th d dh n
त थ द ध न
p f b bh m
प फ ब भ म
y r l v  
य र ल व  
sh SH s h  
श ष स ह  
kSha tra gya shra gM/gum
क्ष त्र ज्ञ श्र

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