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Tuesday, 13th May 2025

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Thought for the day

The senses are higher than the body organs. The mind is higher than the senses. The intellect is higher than the mind and the soul is higher than the intellect.
Chapter 3 Verse 42 Bhagavat Gita

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आचमनम

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पानी की बूंदों को तीन बार मंत्र के साथ पीने को आचमन कहते हैं। ये धार्मिक कर्तव्यों और संस्कारों को निभाने के लिए आपको शुद्ध और तैयार करता है। मनुस्मृति 2.61 कहती है : “शौच ईपसु: सर्वदा आचामेद एकांते प्राग-उदङ्ग मुख:” जो पवित्रता चाहता है वो हमेशा उत्तर या पूर्व सामना करते हुये एकांत मे आचमन करेगा।

अगर आपका “उपनयन” हो चुका है, यज्ञोपवीत प्राप्त हुआ है, तो आप “आचमन” करना शुरू कर सकते हैं।

आचमन अपना मुँह कुल्ला करने के रूप में आंतरिक श्द्धता देती है।

श्रुतियों और स्मृतियों के अनुसार आचमननिम्नलिखित समयों मे करना चाहिए:

अपने दाँत साफ करने के बाद एक बार, पेशाब के बाद दो बार, और आंत(मल) सफाई के बाद तीन बार आचमन करना चाहिए। एक बार स्नान के पहले और दो बार स्नान के बाद। पानी पीने और कठिन पदार्थ खाने के लिए भी यही शासन है। भोजन करने के पहले और भोजन के बाद दो बार जप, हवन, होम /त्रिकाल संध्या, अर्चना, दान देने और दान प्राप्त करने के पहले दो बार और बाद मे एक बार।

आपके विशेष आचमन प्रक्रिया के लिए “मेरा आचमन” खंड को इस्तेमाल कीजिये।|

उसके पेहले “माइ प्रोफ़ाइल” को सही मात्र से भर लीजिये । आचमन हमेशा ब्रहमतीर्थ भाग से किया जाता है

  1. हात मे पानी रखते हुये उच्चरण करें: “अच्युताय नमः” और अपनी दाईं हथेली के आधार भाग के माध्यम से पानी पी लें। (ब्रहमतीर्थ)
  2. फिर से कहे: “अनंताय नम:” और घूंट पानी फिर से पी लें।
  3. फिर से कहे: “गोविंदाय नमः” और घूंट पानी फिर से पी लें।

इस के बाद अपने दाहिने अंगूठे से अपना मुँह पोंछ लें और पानी से अंगूठे धो लें।  

           

 

 

1 प्रसाद, फल, शहद, तुलसी जैसे पत्र, गन्ने, इलैची, केसर की तरह खुशबूदार जड़ीबूटियों और तिल स्वीकार करने के पहले या बादमे आचमन नहीं किया जाता है।

  1. अगर आपको कभी पानी नहीं मिला या आप निर्धारित तरीके से आचमन नहीं कर पाएंगे, तो आप “श्रोत्राचमन” कर सकते हैं। पहले प्रणव मंत्र “ॐ” कहें , फिर दायें हाथ से अपने नाक की नोक को छू लें, फिर अपने दायें कान को छू लें। यह “श्रोतराचमन” होगा।

 

क्या आप बहुत बीसी हैं? योगासन के लिए समय नहीं है क्या? आचमनं करके देखिये। ये (कुक्कुटासना) जो है, ये जोड़ों और पीठ को मजबूत करता है। यह पेट की दीवारों को भी मज़बूत करताहै और पाचन में मदद करता है। हालांकि इस मुद्रा में ‘प्रभु के नाम’ लेते हुए पानी स्वीकार करने से आंतरिक पवित्रता मिलती है।

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