List of Samskaaras
स्मार्त कर्मा
पञ्च महा यज्ञ - ५
सप्त पाक यज्ञ - ७
श्रौत कर्मा
सप्त सोम यज्ञ - ७
सप्त हविर यज्ञ - ७
pooja
मृतक माता – पिता और पूर्वजों को पितर कहलाते हैं|
तिल और पानी की जलांजली के माध्यम से पित्रों को हम संतुष्ट कर सकते हैं और उनको ऊंचे स्तर पर पहुंचा सकते हैं। इस कर्मा को “पितृ तर्पण” कहते हैं।
यह पितृ तर्पण कर्मा मनुष्य का पञ्चमहायज्ञ कर्मा मे एक है। (संस्कार अंक 23)
मनुस्मृति 3.68 की अनुसार:
पञ्च सूना ग्रुहस्तस्य चुल्ली पॆषण्युपस्कर: |
कण्डनी च उदकुम्भश् च बध्यतॆ यास् तु वाहयन् ||
एक गृहस्थ के घर में 5 हत्या स्थान हैं. वे है चूल्हा, चक्की, झाड़ू, मूसल और मोर्टार, पानी के बर्तन. वह दैनिक छोटे और अदृश्य लाखों प्राणियों को मारता है, अपरिहार्य उसे पाप पहुँच जाता है।. इन सभी पांच पापों को निवृत्त करने के लिए यह ” पंचमहायज्ञ”गृहस्वामियों के लिए दैनिक निर्धारित किया गया है |
मनुजी आगे 3.70 में कहते हैं , “ पितृ यज्ञस्तु तर्पणं ” ऊपर कहे हुये 5 यज्ञों में से पितृ तर्पण एक है |
3 पीढ़ियों के पैतृक और मातृक वर्गों के पित्रों (पिता,दादा,परदादा सपतनियाँ/नाना,परनाना,उनके पिता सपत्नियाँ) को हम तिल और जल का पेशकश करते हैं। हम 3 पीढ़ियों के पित्रों को वसु, रुद्र और आदित्य पितृ देवता के रूप में आसन देके आवाहन करते हैं। (वसु रुद्र आदित्य स्वरूपानाम)
फिर हम उन्हें मंत्रों के साथ पानी और तिल की पेशकश करते हैं (तर्पण) जो उन्हें बहुत पसंद है।
फिर हम कहते हैं यजुर्वेद संहिता से एक मंत्र- “ऊर्झम् वहन्तीरम्रुतम् घ्रुतम् पय: कीलालम् परिश्रुतम् स्वधास्थ तर्पयत मॆ पित्रून्.”
मतलब यह तिल और जल मेरे पित्रों को अमृत,पानी, दूध, घास, रक्त या किसी भी अन्य आवश्यक खाद्य/भोजन की रूप मे पहुँच जायें |
(वे स्वर्ग में हो सकते हैं, पुरुष या पेड़ के रूप में या किसी अन्य रूप मे पुनर्जन्म लिए होंगे)। पितृ तर्पण के माध्यम दिये गए तर्पण को स्वधा कहते हैं।
विष्णु पुराण,2 अंश 3,अध्याय 14,श्लोक 1 &2 मे और्व ऋषि कहते हैं :
मृतक पिता के बेटे अपने पिता की मौत के एक साल बाद “पितृ तर्पण”शुरू कर देना चाहिए.
महाभारत,आदि पर्व, 74.39 मे दिया है :
पुन्नाम्नॊ नरकादयस्मात्पितरम् त्रायते सुत:.
तस्मात्पुत्र इति प्रॊक्त: स्वयमॆव स्वयम्भुवा.
बेटा पिता को “पुत” नाम का नरक से बचाता है,इसलिए उसे स्वयंभु भगवान ने “पुत्र” नाम रखा था |
1। महाभारत,अनुशासन पर्व , अनुभाग 145 मे दिया है :
धन्यम् यशस्यम् आयुश्यम् स्वर्गम् शत्रुविनाशनम् |
सन्तारकम् चेति श्राद्धमाहूर् मनीक्षिण: | |
पित्रों का श्राद्ध करने से धन, यश, दीर्घायु, स्वर्ग, संतान और दुश्मन के विनाश प्राप्त होता है।
2। विष्णु पुराण, अंश 3, अध्याय 14, श्लोक 12 से 14 का कहना है:
एता युगाद्या: कथिता: पुराणॆष्वनन्तपुण्यास्तिथश्चस्त्र:
उपप्लवे चन्द्रमसो रवॆश्च त्रिष्वष्टकास्वप्ययनद्वयॆ च.
पानीयमप्यत्र तिलैर्विमिश्रं दद्यात्पितृभ्य प्रयतॊ मनुष्य:.
श्राद्धं क्रुतम् तॆन समासहस्रं रहस्यमॆतत्पितरॊ वदन्ति.
उगादि दिनों (4 युगों जब शुरू हुआ) पर किया हुआ श्राद्ध अंतहीन “पुण्य” देता है।
चंद्र ग्रहण या सूर्या ग्रहण (ग्रहणों) दिन, या 3अष्टकाओं, उत्तरायण या दक्षिणायन की शुरुआत पर भक्ति के साथ जो पानी और तिल का तर्पण करता है वो 1000 वर्ष के लिए श्राद्ध कर देता है। यह पित्रों चुपके से रहस्य बात करते हैं.
#किन दिनों मे तर्पण करना चाहिए ?
1. ब्रह्मयज्ञ (संस्कार न। 21) रोज,संध्यावंदन के बाद,“देवऋषीपितृ तर्पण भाग मे”
2. 96 दिनों में स्नानम, सांध्यवंदना, ब्रह्मयज्ञ,माध्याहनिका संध्या,और भगवत आराधना के बाद |(नीचे देखें).
3. सूर्य और चंद्र ग्रहणों में: सूर्यग्रहण की शुरुआत में स्नान लेने के बाद तर्पणकरना चाहिए. लेकिन चंद्रग्रहण की शुरुआत में, एक बार तुरंत नहाना चाहिए, लेकिन ग्रहण के पिछले भाग में तर्पण शुरू करके ग्रहण के साथ इसे अंत करें|.
4. परेहनि तर्पण :माता – पिता की वार्षिक श्राद्ध के अगले दिन,सुबह सांध्यवंदन के बाद करना चाहिए |
# तर्पण दिन का किस समयमे करना चाहिए ?
अह्णॊ मुहूर्ता विख्याता: दश पञ्च च सर्वदा.
तत्र अष्टमॊ मुहूर्तॊ यह स काल: कुतप: स्मृता:.
उपरोक्त श्लोक के अनुसार, एक दिन 15 मुहूर्त से विभाजित है और दिन के आठवें मुहूर्त को “कुतप काल” कहते हैं। यह करीब दोपहर ११ बजे से १२ बजे तक है|इस काल मे तर्पण/श्राद्ध शुरू करना चाहिए ।
# षण्णवती तर्पण
धर्म सिंधु, (मूलमात्र:) मे श्री वासुदेव शर्मा का कहना है: