धर्म की आवाज
नमस्ते! प्रिय अमर बच्चे!
मैं आप सबको एक बहुमूल्य खजाने की याद दिलाना चाहती हूँ।
धार्मिक संसकारें मानव की वो कर्तव्य है जो ज्ञान की अनन्त प्रकाश के रूप मेंअति प्राचीन काल से मानव सभ्यता के जीवन को अर्थपूर्ण कर आए हैं।
लेकिन क्या संस्कारों के अभ्यास आज वास्तव में मौजूद है? या यह एक काल्पनिक अभिव्यक्ति ही है? केवल अनुष्ठान की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति एक आधुनिक तरीके से यहाँ और वहाँ मौजूद हैंजैसे यज्ञोपवीत और विवाह। और अगर यह कुछ कोने में किया जा रहा है, तो क्या यह नियमों के अनुसार हो रहा है? मैंने अक्सर लोगों से सुना है कि वे व्यस्त दिनचर्या की वजह से अनुष्ठानों को कम कर दिये हैं।
यह “समय नहीं है” आज दुनिया भर का समस्या हो गया है। लोग आसानी से कह लेते हैं की यह दुर्दशा “कली युग”के कारण है और अपरिहार्य है और आगे की पीढ़ियाँ और खराब हो जायेंगे।धीरे – धीरे अब संसकारें आदि काल के परंपरा बन गए हैं।वास्तव मे हम इस लापरवाही के कारण अपने मूल, समग्र मार्ग और लक्ष्य को खो दिये हैं।
जरा सोचिए! भगवानजो अनंत, और सभी के ज्ञाताहै ,वे हमे वेद इसलिए दिये हैं ताकि इस बदलती युग मे भी हम शांतिपूर्ण जीवन जी पाएँ। ताकि हम सब इस हलचल के बीच मे भी अपने तन और मन को स्थिर रखे। हमे पहले अपने तो अभी क्या हम युवा पीढ़ी की ओर विचार दे सकते हैं?क्या हम थोड़ा समय निकालकर उन्हें अच्छी परंपरा सिखा सकते हैं?
**पहले हमे बड़ो ओर विद्वानों से साथ संग प्राप्त करना चाहिए।
**हमे योग शास्त्रों से दोस्ती करना चाहिए।उनको पालन करके पवित्र महसूस करना चाहिए
**हमारे कार्यों को अटूट विश्वास के साथ शास्त्रों के माध्यम से करें और असलीस्वतंत्रता पाएँ
**उम्मीदवारों को अपने गुरु से परिचय कराके उन्हें साथ देना चाहिए।
**हमें वेद शास्त्रों के पालन को बढ़ावा देने और उसके विलुप्त होने से रोखना चाहिए।
**हमें जीवन की सभीकर्मों को भगवान को समर्पित करने की भावना ग्रहण करना चाहिए।
**मानव जीवन एक यज्ञ है ! संसकारें के सात जीना उसमेएक बलि ( हविस) है।
**हमें सभी स्तरों मे बुद्धिमत्ता से आत्म – नियंत्रण करना चाहिए।
यह एक वेबसाइट है जिसमे संसकारें विशेष रूप से समर्पित है। इस साइट के डिजाइन हो रहा है। इस साइट हमारे सभी हिंदू भाइयों के जीवन में संसकारें को वापस लाने की प्रयास कर रही है। धार्मिक अनुष्ठानों के संरक्षण के लिए यह एक पहली कदम है।
यह निष्कपट यात्रा अभी शुरू हुई है ….यह काम हम अकेले नहीं कर पाएंगे । हमे आपकी जरूरत है।
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धन्यवाद
आपकी कृपालु,
धर्म